इस समय जब, केरल से लेकर कर्नाटक सहित देश के अनेक हिस्सों में प्रकृती अपना रोर्द्रू रुप दिखाकर हमें चेतावनी दे रही है, तब मध्यप्रदेश के बैतूल और हरदा जिले के आदिवासी हरियाली अभियान के जरिए चुपचाप इससे निपटने के दीर्घकालीन उपाय पर सतत काम में लगे है. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी दो माह चलने इस हरियाली अभियान के तहत आदिवासी जहाँ-जहाँ गाँव घूमकर फलदार पौधे लगाने का संदेश दे रहे है, वहीं २० अगस्त तक इन जिलों के विभिन्न आदिवासी बाजारों में हरियाली रैली भी आयोजित की जा रही हैे इसके तहत आज हरदा जिले के दीदमदा, रबांग, ढेगा, लोधीढ़ाना और बैतूल जिले के बोड़, पीपल्बर्रा, बालाडोंगरी, दुमका, बरखेड़ा सहित दो दर्जन गांव के आदिवासी प्रतिनिधियों ने श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद के बैनर तले चीरपाटला बाजार में हरियाली रैली निकालीे इस रैली में हाथों में पौधे ले हरियाली के जरिए खुशहाली लाने और प्राकृतिक आपदा से निपटने और पर्यावरण सुधारने और रोजगार के अवसर पाने का सन्देश दिया. सजप की और से रामदीन, बंसत टेकाम, राजेंद्र गढ़वाल, संजय आर्य, सदाराम ने इस रैली का संचालन किया. राजेन्द्र ने बताया कि, इस वर्ष इस अभियान के तहत 1500 फलदार पौधे लगाए जा चुके है.हरदा जिले के रबांग के रामदीन और बैतूल जिले उम्बरडोह के परसराम ने बताया, कि जब जिले के आदिवासी साथियों को यह अहसास हुआ: एक तरफ जो नदियाँ बारह माह बहती थी, वो अब ठंड के महीनों में ही सूखने लगी; वहीं अति बाढ़ से भी परेशानी बढते जा रही हैे दूसरी तरफ, जंगल मिट रहा है, और रोजगार के लिए भी मुम्बई और मद्रास जाना पड़ रहा है. तब यह तय किया गया कि इस सबसे निपटने के लिए, जंगल और गाँव में खाली पड़ी जमीन को विभिन्न तरह के फलदार पौधों से भरना पड़ेगा. इससे ना सिर्फ पर्यावरण सुधरेगा और नदीयों पानी बढेगा और पेड़ मट्टी का कटाव रोक बाढ़ को भी नियंत्रित करेंगे, और, इन फलों की बिक्री से गांव के अंदर ही रोजगार मिलेगा.
समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुराग मोदी ने बताया कि, सजप और श्रआंस के व्दारा दस पहले शुरू इस अभियान के तहत इस साल भी इन जिलों के आदिवासीयों ने प्राकृतिक आपदा, पर्यावरण और रोजगार के ली जंगल और गाँव में खाली पड़ी जमीन पर में फलदार पौधों लगाने की सोच से की गई थी. जब लोगों ने देखा कि, सरकार की गलत नीतियों के चलते जहाँ जंगल मिट रहे है, वहीं धीरे-धीरे आदिवासी जंगल से कटते जा रहे है; वो अपना रोजगार अब जंगल से नहीं पाते और रोजगार की तलाश में देशभर में भटकते है और इससे दोनों का नुकसान हो रहा है. सबसे बड़ी बात पर्यावरण की फिक्र करने वाला कोई नहीं बचा. इसलिए, आदिवासी वापस जंगल से जुड़े इस हेतु ऐसे अभियान की जरूरत थी, जो आगे चलकर उन्हें रोजगार भी दे. यह सरकार के वनीकरण के अभियान से नहीं होता है, क्योंकि एक तो, वो एक तरह के ही व्यवसायिक प्रजाति के पौधे लगाते है; दूसरा, अगर वो कुछ फलदार पौधे लगा भी ले तो उनका अभियान पूरा होने के बाद उन पौधों को सरकारी पौधा मानकर कोई उसकी देखभाल करने वाला नहीं होता है. इसलिए, पिछले तीस साल से वनीकरण के तमाम अभियान के बावजूद कोई परिणाम दिखाई नहीं दिया.
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