मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के ग्राम छीपौक खिरक में 6 माह पूर्व घास की रोटी खाने वाली महिला नन्नी बाई की मौत के बाद सरकार ने घोषणाएं तो कई की, मगर उन पर अमल नहीं हो रहा है. किसी भी घोषणा का क्रियांवयन अब तक नहीं हुआ है. आज भी नन्नी बाई के परिजन और उनके ग्राम के आदिवासी घास की रोटी खाने को विवश हैं. इस मामले की शिकायत कांग्रेस ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से की है.
इस बात का खुलासा कांग्रेस की पोल खोल समिति के सदस्य पवन घुवारा ने किया. उन्होंने बताया टीकमगढ़ जिले में करीब छह माह पूर्व नन्ही बाई की मौत हुई थी. इस मौत का कारण घास की रोटी खाना बताया गया था. नन्ही बाई की मौत के बाद मामला जब गर्माया तो प्रदेश की शिवराज सरकार ने कई घोषणाएं की थी. इसके बाद इन घोषणाओं पर अमली जामा नहीं पहनाया गया. हाल ही में जब प्रदेश कांग्रेस की कमान कमलनाथ ने संभाली और कांग्रेस की पोल खोल अभियान समिति बनाई तो मुझे यह जिम्मेदारी दी कि टीकमगढ़ क्षेत्र में नन्ही बाई की मौत के बाद सरकार ने जो घोषणाएं की, उन घोषणाओं पर अमल हुआ या नहीं. इसके बाद मैंने अपने कांग्रेस साथियों के साथ नन्ही बाई के परिजनों से मुलाकात की और बातचीत की.
घुवारा ने बताया कि नन्हीं बाई के परिजनों का कहना है कि शासकीय सुविधाओं से उनका परिवार ही नहीं, बल्कि गांव के आदिवासी भी वंचित हैं. नन्हीं बाई की बहू ने बताया कि हम आज भी घास की रोटी, पुवार भाजी खाने को मजबूर हैं. गांव के आदिवासियों ने कहा कि वे घास के बीज को पिसकर खाते हैं. उन्होंने कहा कि शासन ने उनकी सास नन्ही बाई के मौत के बाद घोषणाएं तो की, मगर एक भी पूरी नहीं हुई.
नन्नी बाई के परिजनों ने बताया कि नन्नी बाई ने जिस स्थल पर अपने प्राण त्यागे थे उस स्थल पर आदिवासियों ने अंडुआ के पेड़ लगा लगा दिया. कांग्रेस के प्रतिनिधि मंडल को यह भी बताया कि नन्नी बाई की हालत जब गंभीर थी, तो जिला अस्पताल ने भी इलाज नहीं किया और वह काफी दिनों से भूखी थी, भूख के कारण ही उनके प्राण चले गए थे. घुवारा ने बताया कि हमने कांग्रेस की ओर से इस मामले की शिकायत अब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को की है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें